अकसर जानलेवा नहीं होता है अल्सर
वर्तमान जीवनशैली के सभी दुष्परिणाम मसलन-तनाव, जंक फूड, तेल-मसाले युक्त भोजन और सिगरेट-तंबाकू के सेवन के उत्पन्न एसिड के कारण पेट में अल्सर होता है। लगातार भूख नहीं लगना, पेट में दर्द, पीठ दर्द और बुखार आना इसका मुख्य लक्षण है। भारत की एक बड़ी आबादी इस बीमारी से पीड़ित है।
पेट में एच पायलोरी नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से भी अल्सर होता है मगर यह कारण भारत में बहुत अधिक नहीं देखा गया है बल्कि इसका प्रभाव पश्चिमी देशों में ही ज्यादा देखा जाता है। यह जरूर है कि देश में बहुत अधिक लोगों में इस बैक्टीरिया का संक्रमण पाया जाता है। मगर इसके कारण यहां अल्सर के ज्यादा मामले नहीं पाए गए हैं।
वैसे यदि अल्सर के साथ एच पायलोरी का संक्रमण हो जाए तो स्थिति खतरनाक होती है मगर अधिकांश मामलों में अल्सर जानलेवा नहीं होता है। अल्सर से खून का स्राव होने पर इसके फटने की संभावना होती है मगर ऐसे मामले बिरले ही देखने में आते हैं।
वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉक्टर बलबीर कसाना के अनुसार अल्सर दो तरह के होते हैं पेप्टिक और ड्यूडेनल। जहां तक कारणों का सवाल है तो आनुवंशिक कारण, हार्ड स्टेराइड लेने, सिगरेट शराब के अत्यधिक सेवन के कारण यह बीमारी होती है।
अधिकांश मामलों में यह बीमारी जीवनशैली से जुड़ी होती है। इसलिए सबसे पहले तो मरीजों को परहेज की सलाह ही दी जाती है। इस बीमारी का पता लगाने के लिए एंडोस्कोपी ही सबसे प्रभावी जांच है। इसके अलावा बोरेमियस मील और गैस्ट्रिक स्टडी द्वारा भी इसका पता लगाया जा सकता है।
जहां तक इलाज का सवाल है तो होम्योपैथी में मुख्यतः फास्फोरस, आर्सेनिक अल्बा, कार्बोवेज, रोबिनिया, नक्सवोमिका, सल्फर, लाइकोपोडियम आदि दवाइयां इस बीमारी के मरीजों को दी जाती है। बीमारी की किस अवस्था में कौन सी दवा कितनी मात्रा में देनी है इसका निर्धारण कोई दक्ष होम्योपैथी चिकित्सक ही कर सकता है।
अकसर यह देखा गया है कि लोग होम्योपैथी की दवाएं अपनी इच्छा से लेने लगते हैं। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है क्योंकि होम्योपैथी इलाज में दवा की मात्रा महत्वपूर्ण होती है और इसे कोई कुशल होम्योपैथ ही तय कर सकता है। इसलिए मरीजों को इलाज के लिए योग्य चिकित्सक की ही मदद लेनी चाहिए।
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